Raghuveer Sharma
43
रसखान रत्नावली (सवैया -126)
कोउ रिझावन कौ रसखानि कहै
मुकतानि सौं माँग भरौंगी।
कोऊ कहै गहनो अंग-अंग
दुकूल सुगंध पर्यौ पहिरौंगी।
तूँ न कहै न कहैं तौं कहौं हौं
कहूँ न कहाँ तेरे पाँय परौंगी।
देखहि तूँ यह फूल की माल
जसोमति-लाल-निहाल करौंगी।।
Please login to like this post Click here..
Please login to leave a review click here..
Login Please Click here..
Please login to report this post click here..